पिता ने सम्पत्ति दान कर दी, तो क्या बच्चे कर सकते हैं दावा? जानिए कानून में क्या अधिकार मिलते हैं

अगर पिता जीवित रहते हुए अपनी संपत्ति किसी और को दान कर देते हैं, तो क्या बच्चे उस पर दावा कर सकते हैं? जानिए भारतीय कानून इसमें बच्चों को क्या अधिकार देता है और किन हालात में दावा संभव है।

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पिता ने सम्पत्ति दान कर दी, तो क्या बच्चे कर सकते हैं दावा? जानिए कानून में क्या अधिकार मिलते हैं
पिता ने सम्पत्ति दान कर दी, तो क्या बच्चे कर सकते हैं दावा? जानिए कानून में क्या अधिकार मिलते हैं

भारत में पारिवारिक प्रॉपर्टी के मामले कई बार रिश्तों में तनाव की वजह बन जाते हैं। खासकर जब पिता अपनी पूरी संपत्ति किसी और को दान कर दें ,चाहे वह किसी रिश्तेदार को हो, ट्रस्ट को या किसी बाहरी व्यक्ति को। ऐसे हालात में बच्चों के मन में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि क्या अब उनका हक इस संपत्ति पर हमेशा के लिए खत्म हो गया है? इसका जवाब है,ज़रूरी नहीं कि ऐसा हो।

कानूनी दृष्टि से देखा जाए तो अगर दान कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए और पिता की पूर्ण मानसिक क्षमता में रहते हुए किया गया है, तो बच्चों के पास तुरंत दावा करने का अधिकार नहीं होता। लेकिन कुछ परिस्थितियों में ऐसा दान चुनौती योग्य बन सकता है।

कब बच्चे दान की गई संपत्ति पर दावा कर सकते हैं?

अगर बच्चों को यह लगता है कि संपत्ति का दान दबाव, धोखे, या भ्रम के आधार पर हुआ है, तो वे अदालत में अपने अधिकार के लिए दावा दायर कर सकते हैं। इसके अलावा अगर यह साबित हो जाए कि पिता दान के समय मानसिक रूप से अस्वस्थ थे या उन्हें गुमराह किया गया, तो ऐसी गिफ्ट डीड को अवैध घोषित किया जा सकता है।

इसी तरह, अगर दान की गई संपत्ति वंशानुगत (Ancestral Property) थी, तो बच्चों का उस पर कानूनी हक बना रहता है, क्योंकि ऐसी संपत्ति केवल पिता की नहीं बल्कि पूरे परिवार की सामूहिक विरासत मानी जाती है। इसके विपरीत, अगर संपत्ति स्व अर्जित (Self-Acquired) थी, तो पिता को उसे दान करने का पूरा अधिकार होता है।

दावा करने से पहले किन बातों की जांच जरूरी है?

  • बच्चों को सबसे पहले दानपत्र (Gift Deed) और उससे जुड़े सभी रजिस्ट्री दस्तावेज़ों की जांच करनी चाहिए।
  • किसी अनुभवी सिविल वकील से सलाह लेकर यह पता करें कि क्या दान की प्रक्रिया में कोई कानूनी त्रुटि या दबाव का पहलू मौजूद है।
  • अगर संपत्ति पर पहले से कोई ऋण या बकाया था, तो बच्चे अदालत में यह दलील दे सकते हैं कि दान से उनके आर्थिक अधिकार प्रभावित हुए हैं।
  • दान के बाद अगर बच्चों की जीवन-यापन की स्थिति कमजोर हो गई है, तो अदालत इंसानी दृष्टिकोण से इस पहलू को भी देखती है।

अदालत किन बातों पर ध्यान देती है?

कोर्ट ऐसे मामलों में तीन प्रमुख बिंदुओं पर गौर करती है-

  1. पिता की मानसिक स्थिति और निर्णय लेने की क्षमता।
  2. दान करते समय कोई दबाव या Influence तो नहीं था।
  3. क्या दान की प्रक्रिया पूरी तरह कानूनी रूप से वैध थी और क्या बच्चों के अधिकारों का अनुचित हनन हुआ है।
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info@sctejotsoma.in

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