Supreme Court: पैतृक कृषि भूमि पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, पैतृक संपत्ति वाले जरूर जान लें कानून!

सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले से परिवार के सदस्यों को मिलेगी कृषि जमीन बेचने में प्राथमिकता, बाहरी लोगों का प्रवेश होगा मुश्किल। यह निर्णय किसानों के लिए क्रांतिकारी साबित होने वाला है!

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भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में पैतृक कृषि भूमि की बिक्री को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जो किसानों और परिवारों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इस फैसले के अनुसार, कृषि भूमि बेचने के मामले में परिवार के सदस्यों को सबसे पहले प्राथमिकता दी जाएगी और बाहरी व्यक्तियों को सीधे जमीन बेचने की अनुमति नहीं होगी। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि परिवार की संपत्ति परिवार के भीतर ही सुरक्षित रहेगी।

Supreme Court: पैतृक कृषि भूमि पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, पैतृक संपत्ति वाले जरूर जान लें कानून!

परिवार के सदस्यों को देंगे प्राथमिकता

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी हिन्दू परिवार का कोई सदस्य कृषि भूमि को बेचने का इरादा रखता है, तो सबसे पहले उसे अपने परिवार के अन्य सदस्यों को जमीन खरीदने का अवसर देना होगा। इससे यह सुनिश्चित होता है कि जमीन का मालिकाना हक परिवार के अंदर ही रहे और बाहरी लोगों को इसमें हिस्सेदारी न मिले।

परिवार के सदस्य कब और कैसे अधिकारदार होंगे?

धार्मिक और कानूनी नियमों के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति के बिना वसीयत के निधन हो जाता है, तो उसकी संपत्ति स्वाभाविक रूप से उसके परिवार के सदस्यों के पास चली जाती है। जब परिवार का कोई सदस्य अपनी हिस्सेदारी या संपत्ति बेचने का मन बनाता है, तो उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह पहले परिवार के बाकी सदस्यों को उस हिस्सेदारी के विक्रय का प्रस्ताव दे। यह परिवार की संपत्ति को परिवार के भीतर सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है।

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धारा 22 क्या कहती है और उसका प्रभाव

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि कृषि भूमि पर धारा 22 के प्रावधान लागू होते हैं। इसका मतलब यह है कि भूमि विक्रय की प्रक्रिया में सबसे पहले परिवार के सदस्यों को अधिकार दिया जाएगा। पुराने प्रावधान जैसे धारा 4 (2) के खत्म हो जाने से इस नियम पर कोई असर नहीं पड़ा है। इस व्यवस्था का मूल उद्देश्य परिसंपत्ति को परिवार के भीतर बनाए रखना और बाहरी व्यक्तियों से बचाना है।

विवाद में आया लाजपत परिवार का मामला

हाल ही में हुए एक मामले में लाजपत नामक व्यक्ति की कृषि भूमि उसके दो बेटों संतोष और नाथू के बीच बाँटी गई थी। संतोष ने अपनी हिस्सेदारी किसी बाहरी व्यक्ति को बेच दी, जबकि नाथू ने इसका विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट तक जाकर अपने अधिकारों की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सजगता से देखते हुए नाथू के पक्ष में फैसला सुनाया और स्पष्ट किया कि खेती की जमीन बेचते समय परिवार के सदस्य पहले प्राथमिकता के हकदार होते हैं।

निर्णय का किसानों और परिवारों के लिए महत्व

यह फैसला न केवल किसानों के स्वामित्व अधिकारों को मजबूत करता है, बल्कि पारिवारिक संबंधों का सम्मान बनाए रखने में भी मददगार साबित होगा। कृषि भूमि की खरीद-फरोख्त में पारिवारिक सदस्य पहले विकल्प के रूप में रहेंगे, जिससे जमीन पर बाहरी व्यक्तियों का अतिक्रमण कम होगा और परिवार की संपत्ति सुरक्षित रहेगी। यह कदम कृषि भूमि को लेकर कानून में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करने का प्रयास है।

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